रायबरेली: सताव स्थित मां गौरा पार्वती मंदिर प्रांगण में आयोजित नव दिवसीय दिव्य श्री राम कथा के आयोजन के तृतीय दिवस पर जगतगुरु स्वामी श्री रामभद्राचार्य ने कथा वाचन करते हुए कहा कि राम कथा से चित्त निर्मल होता है। जीवन अनमोल है, इसकी पूर्णता से परिचित होना ही अपने स्वरूप को पहचानना है। श्रद्धा और विश्वास इसमें परम सहायक है। इंद्रियों के माध्यम से चित्त विषयों की ओर आकर्षित होता है, मन इसका रस लेता है, लेकिन जो भगवान नाम का आश्रय श्रद्धा और विश्वास के साथ लेकर अंर्तमुखी हो जाता है उसका मन जाग्रत हो जाता है। उसके ज्ञान चक्षु अर्थात तीसरा नेत्र खुल जाता है। और ऐसा व्यक्ति किसी अभाव एवं प्रभाव न जीकर अपने स्वभाव सत् चित् आनंद में जीता है। उन्होंने कहा की जब सच्चे अपमानित होते हैं और मक्कार, झूठे पूजे जाने लगते हैं तो वेदनाओं और पीड़ाओं को हरने के लिए भगवान अवतरित होते हैं।
इसके पूर्व साध्वी पंछी देवी ने आए हुए श्रोता गणों को कथा का रसपान कराते हुए कहा कि जीवन में विनम्रता होना जरूरी है और जब आप बड़े हो जाते हैं या बड़े लोगों के साथ रहते हैं तो यह और जरूरी है। बड़ा बनाना या ऊंचे पद पर पहुंचना आसान है, लेकिन वहां पर टिके रहना आसान नहीं है। इसके लिए तप चाहिए। बड़े आप बने हो तो आप की परीक्षा तो होगी। उन्होंने जीवन में मां की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि पिता तो केवल एक अंश देता है, लेकिन मां की भूमिका तो बच्चे के व्यक्तित्व को स्वरूप देती है। मां का स्वभाव उसके संस्कार बच्चे में सबसे ज्यादा आते हैं। नारी का परिचय धैर्य, समर्पण, ममता, वात्सल्य, शील, वीरता, मर्यादा व दोनों कुलों का सम्मान बनाए रखना है। यह जीवन में सफल होने का मंत्र है।