सिखों के चौथे गुरु श्री गुरु रामदास जी का 448 वा प्रकाश पर्व दोनों गुरुदारा साहेब में बहुत ही श्रद्धा, हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। सुबह अमृत वेले से ही पाठ, कथा,कीर्तन ज्ञानी जगरूप सिंह जी, ज्ञानी जनक सिंह जी,भाई जसवंत सिंह जी,भाई हरप्रीत सिंह जी ने किया।
ज्ञानी जगरूप सिंह जी ने गुरु जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि गुरु रामदास जी का जन्म 16 सितंबर 1574 को लाहौर शहर के चुना मंडी इलाके में हुआ,आप की माता दया कौर और पिता हरिदास जी सोढ़ी थे ।
वरिष्ठ सदस्य सुरेंद्र सिंह मोंगा जी ने गुरुजी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया की आपका घर का नाम भाई जेठा था गुरु जी के बाल अवस्था में माता पिता हरिलोक गमन कर गए थे,कुछ समय रहने के बाद आपका जीवन ननिहाल में गुजरा उसके बाद गोइंदवाल साहब चले आए,गुरुरामदास जी का मन ईश्वर की भक्ति की ओर रहता था गुरुरामदास जी सिखों का पवित्र नगर अमृतसर में हरमंदिर साहिब, जिसे प्राय: स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है,का निर्माण का श्रेय प्राप्त है चारो दिशाओं में निर्मित इसके चार प्रवेश द्वार जाति पात पर आधारित सभी भेदभाव की समाप्ति के प्रतीक हैं।दरबार साहेब प्रत्येक व्यक्ति के लिए खुला है सभी श्रद्धालुओं के लिए गुरु का लंगर दिन/रात चलता रहता है, हजारों श्रद्धालु यहां प्रतिदिन दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं अमृतसर नगरी की स्थापना करके उन्होंने महान राष्ट्र के रूप में सिखों की भावी महत्ता की नीव डाली थी।
उपरांत अरदास व लंगर का आयोजन हुआ लंगर की सेवा अरोड़ा परिवार की ओर से रही जिसमे बहुत उत्साह,श्रद्धा के साथ संगत ने प्रसाद( लंगर) ग्रहण किया।
इसमें प्रमुख रूप से सरदार त्रिलोचन सिंह मोंगा,अमरीक सिंह,कुलदीप सिंह, दलजीत सिंह अरोड़ा, परमजीत सिंह गांधी,गुरजीत सिंह तनेजा,हरविंदर सिंह हरचरण सिंह, सुरेंद्र सिंह बग्गा, गुरमीत सिंह, तेजपाल सिंह मोंगा,त्रिलोचन सिंह छाबड़ा,इंदरजीत सिंह,जोगेंद्र सिंह,जसवंत सिंह,गुरबचन सिंह, अंकित सिंह,रोमी सिंह,गुरभेज सिंह आदि उपस्थित रहे।